यानी दो दिन में एक लाख की बढ़ोतरी। ऐसी तेज बढ़ोतरी तो तब भी नहीं देखी गई थी, जब वायरस का कहर चरम पर था। जाहिर है, मामला पहली या दूसरी लहरों का नहीं है। बात यह है कि जिस वायरस को काबू में आया हुआ माना जाने लगा था, उसने यह दूसरा ऐसा हमला किया है, जो पहले से भी ज्यादा खतरनाक है। स्वाभाविक ही सरकारें एक बार फिर अलर्ट मोड में आ रही हैं। राजधानी दिल्ली में नाइट कर्फ्यू की घोषणा कर दी गई है। महाराष्ट्र में पहले ही यह घोषणा की जा चुकी है। कई इलाकों में आंशिक लॉकडाउन लागू किया जा रहा है। कई राज्य बाहर से आने वालों पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाने का ऐलान कर रहे हैं। इन सबका मकसद यह बताया जा रहा है कि लोगों के स्तर पर देखी जा रही लापरवाहियों में कमी आए। मगर इन पाबंदियों का कुछ और ही असर हो रहा है। लगभग साल भर की सुस्ती के बाद बिजनेस गतिविधियों में जो तेजी दिखाई दे रही थी, वह दोबारा मंद पड़ने लगी है। गांवों से काम की तलाश में शहर लौटे मजदूरों के भी वापस गांवों का रुख करने के संकेत मिल रहे हैं। इसने कंपनी प्रबंधकों की चिंता बढ़ा दी है। लेबर की कमी उनकी रिवाइवल की योजना पर पानी फेर सकती है।
यही नहीं कर्फ्यू और लॉकडाउन जैसे कदम वैक्सिनेशन प्रक्रिया को भी प्रभावित करेंगे। लोगों की चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच को मुश्किल बनाएंगे। इससे लोगों की आजीविका तो संकट में पड़ेगी ही, कोरोना को रोकने के उपाय भी कमजोर होंगे। साफ है कि चुनौती कठिन भले हो, लेकिन जरूरत लॉकडाउन की तरफ बढ़ने की नहीं, टीकाकरण को जितना हो सके बढ़ाने और मास्क लोगों तक मुफ्त पहंचाने जैसे कदम उठाने की है।