इसी बिंदु पर अर्बन प्लानिंग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। हमारे सामने लंदन जैसे शहरों के उदाहरण हैं जो किसी जमाने में दुनिया के सबसे बड़े रोजगार केंद्रों में शुमार होते थे और सबसे गंदे शहरों में उनकी गिनती होती थी। पर समय के साथ वे बहुत सारे रोजगार देने के बावजूद सुंदर, साफ और बेहतरीन शहरों में शुमार हुए। ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स इस मायने में तो उपयोगी है ही कि यह शहरों में उपलब्ध सुविधाओं को वहां रहने वालों की नजर से समझने का मौका देता है, पर इसकी सबसे बड़ी सार्थकता इस बात में होगी कि देश की श्रमशील और उत्पादक आबादी को अपनी ओर खींचने वाले शहरों को अधिक से अधिक रहने लायक भी बनाया जा सके।
रहने लायक शहर : रोजगार की जगहों को सुंदर, सुविधाजनक बनाने की चुनौती
केंद्रीय आवास तथा शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा गुरुवार को जारी की गई शहरों की रैंकिंग कई लिहाज से महत्वपूर्ण है। साफ-सफाई और अन्य सुविधाओं के आधार पर शहरों की रैंकिंग पहले से होती आई है। इस बार ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स में इन शहरों की गुणवत्ता को वहां रहने वाले लोगों की नजर से कुछ खास पैमानों पर नापने की कोशिश की गई है। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में बेंगलुरु, पुणे और अहमदाबाद तथा दस लाख से कम आबादी वाले शहरों में शिमला, भुवनेश्वर और सिलवासा को क्रमशः पहला, दूसरा और तीसरा स्थान मिला। दिलचस्प बात है कि बड़े शहरों में मोस्ट लिवेबल सिटी का ताज भले बेंगलुरु को मिला हो, पर क्वॉलिटी ऑफ लाइफ के आधार पर चेन्नै, कोयंबटूर और नवी मुंबई को क्रमशः पहला, दूसरा और तीसरा स्थान दिया गया।