गनीमत रही कि डेमोक्रैटिक पार्टी के प्रत्याशी जो बाइडन और सिटिंग प्रेजिडेंट के बीच मतों का अंतर अच्छा-खासा रहा। उनकी जीत का फासला अगर 60 लाख के बजाय 10-20 लाख का होता तो ट्रंप संदेह का लाभ उठाते हुए अपनी हार को जीत में बदलने के लिए किस हद तक जाते और फिर अमेरिकी लोकतांत्रिक व्यवस्था की क्या गत बनती, इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
बहरहाल, जैसे भी हो यह खतरा इस बार टल गया है। उम्मीद की जाए कि इस मौके का फायदा उठाते हुए अमेरिका का नया निजाम अपने यहां लोकतांत्रिक संस्थाओं और मूल्यों को इतनी मजबूती देगा कि भविष्य में जनादेश के अपहरण की आशंका दोबारा सिर न उठा सके। राहत की बात है कि निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के कदम इसी दिशा में बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपनी जो टीम चुनी है, मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के जो नाम फाइनल किए हैं, वे न सिर्फ कार्यकुशलता और अनुभव की कसौटी पर खरा उतरते हैं बल्कि चेहरों के स्तर पर शासन में विविधता की जरूरत भी पूरी करते हैं।
जमैकन-भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से आगे बढ़ें तो आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने जा रहे अलेजांद्रो मेयरकास का परिवार क्यूबा से अमेरिका में बतौर रिफ्यूजी आया था। जहां तक इस नई सरकार की नीतियों का सवाल है तो विदेश मंत्री की जिम्मेदारी पूर्व राष्ट्रपति ओबामा के समय विदेश उपमंत्री रहे एंटनी ब्लिंकेन को सौंपना इस बात का संकेत देता है कि विदेश नीति में अचानक कोई बड़ी उठापटक नहीं देखने को मिलेगी।
यूं भी कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में ब्लिंकेन कह चुके हैं चीन की बढ़ती आक्रामकता अमेरिका और भारत दोनों के सामने साझा चुनौती है, जिसका मुकाबला वे भारत से रिश्ते और बेहतर बनाकर करना चाहेंगे। ऐसे में उत्सुकता एक ही बची है कि पाकिस्तान के प्रति बाइडन सरकार क्या रुख अपनाती है। इतना तय है कि भारत-अमेरिका संबंध ट्रंप के दौर से नीचे नहीं जाने वाले।