इसके बरक्स जी-20 में दुनिया के कुल उत्पादन के 85 फीसदी हिस्से को कवर करने वाले तमाम बड़ी और मध्यम अर्थव्यवस्थाओं वाले देश शामिल हैं। यही वजह है कि जब भी दुनिया किसी बड़ी चुनौती के रू-ब-रू होती है तो जी-20 से यह उम्मीद की जाती है कि वह कोई एकीकृत रणनीति लेकर सामने आएगा। 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान इस मंच ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई थी। इस बार तो दुनिया महामारी और आर्थिक संकट की दोहरी चुनौती से गुजर रही है। कोरोना के चलते पूरी दुनिया में 14 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कह चुका है कि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4.4 फीसदी की गिरावट आने वाली है।
विश्व बैंक ने आगाह किया है कि कोरोना महामारी के चलते 10 करोड़ लोग भीषण गरीबी में धकेले जा सकते हैं। बावजूद इसके, जी-20 के देश सहयोग और सामंजस्य की सामान्य अपीलों से आगे नहीं बढ़ सके। हालांकि इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह जी-20 के सामूहिक विवेक पर नहीं डाली जा सकती। इस अनिश्चय के पीछे काफी बड़ी भूमिका अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के असहयोग की भी है जो अपने पूरे कार्यकाल के दौरान तमाम अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संस्थाओं के प्रति असम्मान प्रदर्शित करते रहे हैं।
जी-20 की बैठक के दौरान भी इसके कुछ कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करने के बजाय गोल्फ खेलते हुए अपना समय बिताना उन्हें ज्यादा जरूरी लगा। देखना होगा कि अगले साल जनवरी में नए राष्ट्रपति जो बाइडन के सत्ता संभालने के बाद अमेरिकी रुख में कैसा और कितना बदलाव आता है। हालांकि यह सकारात्मक हो तो भी संकट से एकदिश होकर निपटने वाली बड़ी पहलकदमियां जी-20 जैसे मंचों के जरिये ही ली जा सकेंगी।