कोरोना और लॉकडाउन से उपजी चुनौतियों को ध्यान में रखें तो एमपीसी की इस बार वाली बैठक कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो जाती है। रिजर्व बैंक ने कर्जों की ईएमआई टालने जैसी कुछ रियायतें भी घोषित कर रखी हैं। इनके प्रभावों का सटीक आकलन होना जरूरी है, ताकि बैंकों द्वारा इन्हें बंद करने या आगे बढ़ाने का फैसला लिया जा सके। साफ है कि एमपीसी की बैठक न हो पाना एक ऐसी अनिश्चितता को जन्म दे रहा है, जो किसी आर्थिक तर्क से नहीं उपजी। यह सरकारी लापरवाही से या किसी विचित्र तर्क के झोंके में अर्थव्यवस्था पर बाहर से लादी गई है। वैसे भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति में ढिलाई का संदेश जाना किसी सरकार के लिए अच्छा नहीं होता। एनडीए-1 के दौरान लोकपाल की नियुक्ति में हुई करीब पांच साल की देरी पर आज भी सवाल पूछे जाते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार तीनों नियुक्तियां जल्द करेगी और एमपीसी की बैठक को लेकर बनी अनिश्चितता ज्यादा लंबी नहीं खिंचेगी।
ठिठका हुआ रिजर्व बैंक
रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) की हर दूसरे महीने होने वाली बैठक इस बार नहीं हो सकी। यह कोई मामूली सूचना नहीं है। मंगलवार यानी 29 सितंबर से शुरू होकर इसे 1 अक्टूबर तक चलना था, लेकिन सोमवार को ही रिजर्व बैंक की तरफ से बैठक स्थगित किए जाने की घोषणा कर दी गई। आधिकारिक तौर पर न तो इसकी कोई वजह बताई गई है, न ही यह सूचना दी गई है कि बैठक कब तक के लिए टाली गई है। माना जा रहा है कि बैठक टलने का कारण इस कमिटी के बाहरी सदस्यों की समय पर नियुक्ति न हो पाना है। एमपीसी में छह सदस्य होते हैं जिनमें तीन आरबीआई के अंदर के होते हैं और तीन इससे बाहर के। अंदर के सदस्यों में गवर्नर, डेप्युटी गवर्नर और एग्जिक्युटिव डायरेक्टर (मॉनिटरी पॉलिसी) होते हैं।