सौरभ गांगुली
नई दिल्ली
दिव्यांग क्रिकेट असोसिएशन (पीसीसीएआई) ने बीसीसीआई अध्यक्ष सौरभ गांगुली को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने संघ को मान्यता देने और दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक समिति बनाने की मांग की है। पीसीसीएआई के सचिव रवि चौहान ने अपने पत्र में कहा है कि गांगुली जब बीसीसीआई अध्यक्ष बने थे, तब कई लोगों को उम्मीद थी कि बोर्ड का भाग्य उसी तरह से बदल जाएगा जिस तरह से भारतीय क्रिकेट का उनके कप्तान बनने पर बदला था।
चौहान ने लिखा, ‘खासकर, दिव्यांग क्रिकेटर्स काफी खुश थे कि ऐसा कोई आया है जो इस मामले को देखेगा और उनकी जिंदगी बदलेगा। उनकी उम्मीदें तब और बढ़ गई, जब दिव्यांग क्रिकेटरों की दादा (गांगुली) के साथ बैठकें हुईं, लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं हुआ है और उम्मीद निराशा में बदल गई है।’
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उन्होंने कहा कि जस्टिस लोढ़ा समिति ने दिव्यांग क्रिकेटरों के लिए एक समिति बनाने की सिफारिश की थी जिसे बीसीसीआई को अपने नए संविधान में शामिल करना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘कुछ साल बीत चुके हैं लेकिन जब भारत के दिव्यांग क्रिकेटरों के लिए कुछ करने की बात आती है तो बीसीसीआई शांत दिखाई देती है।’
खिलाड़ी के साथ-साथ एमए-बीएड भी हैं धामी
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जब घर में कुछ नहीं बचा तो धामी को परिवार का पेट भरने के लिए मजदूरी के लिए मजबूर होना पड़ा। धामी को 3 साल की उम्र में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, जिसके बाद से वह 90 फीसदी दिव्यांग हैं। क्रिकेट की फील्ड पर उन्होंने खूब अवॉर्ड अपने नाम किए हैं। इसके अलावा वह इतिहास में एमए हैं और उनके पास बीएड की डिग्री भी है। लेकिन इतनी शैक्षिक योग्यता और खेलों में भी अपने देश का प्रतिनिधित्व कर चुके और वर्तमान में अपने राज्य के लिए खेल रहे इस खिलाड़ी के पास कोविड- 19 के चलते शुरू हुए लॉकडाउन में कमाई का कोई सहारा नहीं है।
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हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को इस 30 वर्षीय खिलाड़ी ने बताया, ‘इससे पहले, मैं वीलचेयर पर आश्रित उन बच्चो को रुद्रपुर में कोचिंग दे रहा था, जिन्हें क्रिकेट का शौक था। लेकिन यह सब रुक गया तो मैं रायकोट (पिथौरागढ़) में अपने गांव आ गया, जहां मेरा परिवार रहता है।’तस्वीर: https://milaap.org/
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उत्तराखंड वीलचेयर टीम के कप्तान होते हुए मलेशिया, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों की यात्रा कर चुके राजेंद्र सिंह धामी ने कहते हैं, ‘लॉकडाउन के इन कुछ महीनों ने हालात मुश्किल बना दिए हैं। मेरे पैरेंट्स बुजुर्ग हैं। मेरी एक बहन और छोटा भाई भी है। मेरा भाई गुजरात में एक होटल में काम करता था लेकिन उसकी नौकरी भी चली गई। इसलिए मैंने मनरेगा योजना के तहत अपने गांव में काम करने का तय किया।’
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जब राजेंद्र से पूछा गया कि इन चुनौतीपूर्ण हालात में क्या उन्होंने किसी से मदद के लिए कहा था, तो धामी कहते हैं, ‘कुछ लोग मदद के लिए आगे आए थे, इनमें से सोनू सूद (Sonu Sood) भी एक हैं, जिन्होंने 11,000 रुपये भेजे थे। इसके अलावा रुद्रपुर और पिथौरागढ़ में भी कुछ लोगों ने मदद की लेकिन यह परिवार के लिए काफी नहीं था।’
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मजदूरी करके भी राजेंद्र सिंह धामी का हौसला टूटा नहीं है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि यह चुनौतियां जल्दी ही खत्म होंगी। वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘अपनी आजीविका चलाने के लिए कोई भी काम करने में कोई बुराई नहीं है। मैंने मनरेगा जॉब में इसलिए काम करना पसंद किया क्योंकि यह मुझे मेरे घर के पास ही काम देता है। भले यह मुश्किल समय है लेकिन मैं जानता हूं कि मैं इससे पार पा लूंगा।’ तस्वीर: https://milaap.org/ से
उन्होंने आगे लिखा, ‘बीसीसीआई के इस व्यवहार का असर यह है कि भारत के दिव्यांग क्रिकेट खिलाड़ी जिसमें दृष्टिबाधित, व्हीलचेयर, सुनने और बोलने में अक्षम क्रिकेटर शामिल हैं, को अभी भी भारत में मान्यता नहीं मिली है और इसलिए इन टीमों का हिस्सा जो खिलाड़ी हैं उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिल रही है और ना ही समाज के किसी कोने से किसी तरह की पहचान।’
पीसीसीएआई के महासचिव ने कहा कि कोविड-19 से पहले खिलाड़ियों की हालत थोड़ी बहुत ठीक थी लेकिन इसके बाद तो और बदतर हो गई है। उन्होंने कहा, ‘खिलाड़ी अच्छे हैं और वे नहीं चाहते कि दूसरे इन पर दया दिखाएं, यह लोग सिर्फ समान मौके चाहते हैं। हमने बीसीसीआई को कई पत्र लिखे, कई बार बोर्ड के सामने अपनी बात रखी लेकिन हमारी अपील की कोई सुनवाई नहीं हुई।’
वर्ल्ड पैरा ऐथलेटिक्स में दिव्यांग खिलाड़ियों का जज्बा
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दुबई में वर्ल्ड पैरा ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में दुनियाभर के कई खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। इस चैंपियनशिप में बहुत से खिलाड़ी कृत्रिम अंग लगाकर खेले तो वहीं कुछ दिव्यांगों ने कमाल का जज्बा दिखाया।
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क्रोएशिया के इवान केतानुसिच मेंस डिस्कस थ्रो स्पर्धा के दौरान चक्का फेंकने का प्रयास करते हुए। उनका एक पैर नहीं है और वह कृत्रिम अंग लगाकर खेलते हैं।
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ब्रिटेन की होली ऑर्नल्ड महिला जैवेलिन थ्रो टी46 फाइनल के दौरान भाला फेंकते हुए।
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जर्मनी में जन्मीं ऑस्ट्रेलिया की वैनेसा महिला लंबी कूद टी63 फाइनल में हिस्सा लेने के बाद अपने कृत्रिम अंग को निकालते हुए।
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जापान के रयो कोसोन मेंस जैवेलिन थ्रो एफ 54 स्पर्धा के दौरान भाला फेंकते हुए।
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जापान की केदा मेगावा महिला 100 मीटर टी63 फाइनल स्पर्धा के दौरान कृत्रिम पैर के साथ दौड़ लगाते हुए।
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महिला 800 मीटर टी 34 फाइनल स्पर्धा के दौरान ब्रिटेन की हाना कॉकरोफ्ट और केर एडेनेगन
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पैरा ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप की मेंस शॉट पुट एफ 40 फाइनल स्पर्धा के दौरान चीन के झेनयु चेन।
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ब्रिटेन के रिचर्ड वाइटहेड मेंस 200 मीटर टी61 फाइनल के दौरान कृत्रिम अंगों के साथ दौड़ लगाते हुए।