ईद उल अजहा मुस्लिमों के मुख्य त्योहारों में से एक है, इसे कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। ईद उल अजहा का त्योहार चांद दिखने के दस दिनों के बाद मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 31 जुलाई या फिर 01 अगस्त को मनाया जाएगा। हालांकि ईद की तारीख चांद के दीदार से तय होती है। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण त्योहार होता है। आइए जानते हैं इस त्योहार के बारे में विस्तार से..
क्या होता है कुर्बानी देने का मतलब
बकरीद पर कुर्बानी देने का मतलब होता है, ऐसा बलिदान जो दूसरों के लिए दिया जाए। जानवर की कुर्बानी को केवल प्रतीकात्मक कुर्बानी माना गया है। कहा जाता है कि अल्लाह के पास केवल खुशु यानि देने का जज्बा पहुंचता है। कुर्बानी देने की रस्म हजरत इब्राहिम से शुरु हुई थी। जो कि इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में से एक थे।
कौन दे सकता है कुर्बानी
दरअसल पर बकरीद पर कुर्बानी उन लोगों के लिए देना वाजिब है, जिनके पास 612 ग्राम चांदी या उसके बराबर की कीमत का पैसा हो। कुर्बानी केवल उन्हीं लोगों पर फर्ज होती है जिस पर किसी तरह का कोई कर्ज न हो। अगर कुर्बानी के वक्त तक आदमी के ऊपर कर्ज रहता है, तो वह कुर्बानी नहीं दे सकता है। इस्लाम में हर आदमी पर उसकी कमाई का ढाई फिसदी हिस्सा ज़कात के लिए होता है, जिससे उस पैसे से किसी जरुरतमंद की मदद की जा सके।
उस पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है जिसके शरीर का कोई हिस्सा टूटा हुआ हो, भैंगापन हो या जानवर बीमार हो। कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा खुद इस्तेमाल किया जाता है, दूसरा किसी जरुरतमंद को और तीसरा हिस्सा रिश्तेदारों को दे दिया जाता है।
ईद उल अजहा मुस्लिमों के मुख्य त्योहारों में से एक है, इसे कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। ईद उल अजहा का त्योहार चांद दिखने के दस दिनों के बाद मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 31 जुलाई या फिर 01 अगस्त को मनाया जाएगा। हालांकि ईद की तारीख चांद के दीदार से तय होती है। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण त्योहार होता है। आइए जानते हैं इस त्योहार के बारे में विस्तार से..
बकरीद 2020
– फोटो : सोशल मीडिया
क्या होता है कुर्बानी देने का मतलब
बकरीद पर कुर्बानी देने का मतलब होता है, ऐसा बलिदान जो दूसरों के लिए दिया जाए। जानवर की कुर्बानी को केवल प्रतीकात्मक कुर्बानी माना गया है। कहा जाता है कि अल्लाह के पास केवल खुशु यानि देने का जज्बा पहुंचता है। कुर्बानी देने की रस्म हजरत इब्राहिम से शुरु हुई थी। जो कि इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में से एक थे।
कौन दे सकता है कुर्बानी
दरअसल पर बकरीद पर कुर्बानी उन लोगों के लिए देना वाजिब है, जिनके पास 612 ग्राम चांदी या उसके बराबर की कीमत का पैसा हो। कुर्बानी केवल उन्हीं लोगों पर फर्ज होती है जिस पर किसी तरह का कोई कर्ज न हो। अगर कुर्बानी के वक्त तक आदमी के ऊपर कर्ज रहता है, तो वह कुर्बानी नहीं दे सकता है। इस्लाम में हर आदमी पर उसकी कमाई का ढाई फिसदी हिस्सा ज़कात के लिए होता है, जिससे उस पैसे से किसी जरुरतमंद की मदद की जा सके।
उस पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है जिसके शरीर का कोई हिस्सा टूटा हुआ हो, भैंगापन हो या जानवर बीमार हो। कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा खुद इस्तेमाल किया जाता है, दूसरा किसी जरुरतमंद को और तीसरा हिस्सा रिश्तेदारों को दे दिया जाता है।