21 जुलाई को सावन का तीसरा मंगला गौरी व्रत है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन महीने के मंगलवार के दिन यह व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव संग माता पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है और अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व होता है। जिस प्रकार से भगवान शिव को सावन महीने का सोमवार अतिप्रिय होता है उसी प्रकार माता पार्वती को सावन मंगलवार का दिन बहुत ही प्रिय होता है। सावन मंगलवार के दिन माता मार्वती की पूजा करने से शुभफलदायी और सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए इसे मंगला गौरी व्रत कहा जाता है।
मंगला गौरी व्रत पूजा विधि
मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही शुभ और सौभाग्यशाली व्रत माना गया है। ऐसे में जो महिलाएं माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को रखना चाहती हैं वे सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि क्रिया करके स्वच्छ वस्त्र पहने। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या तस्वीर को लाल रंग के कपड़े के ऊपर रखकर पूजा का संकल्प लें और उसके बाद पूजा आरंभ करें।
पूजा में माता को सुहाग की सारी पूजा सामग्रियों को चढ़ाएं और विधिवत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें। पूजा करने के बाद माता पार्वती की आरती करें। व्रत रखने के दौरान पूरे दिन में सिर्फ एक बाद सात्विक भोजन ग्रहण करें।
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मंगला गौरी व्रत के लाभ
सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा सावन में मंगला गौरी व्रत रखने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य, दांपत्य सुखी जीवन और संतान सुख का फल प्राप्त होता है। वहीं जिन कन्याओं के विवाह में कोई अड़चन आती है वह इस व्रत को रख सकती हैं।
मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक व्यापारी और उसकी पत्नी सुखी जीवनयापन कर रहे थे। व्यापारी के पास ढ़ेर सारी धन-संपदा थी। लेकिन पति- पत्नी संतान सुख से वंचित थे। लगातार कई वर्षों तक कठोर व्रत और पूजा करने के बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। लेकिन किसी ज्योतिषाचार्य ने उन्हें बताया कि यह बालक की कम आयु में ही मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जानकार दोनों बेहद परेशान होने लगे।
कुछ वर्षों के बाद बेटे की आयु विवाह योग्य हुई तो उसके माता-पिता ने एक सुयोग्य कन्या संग उसका विवाह कर दिया। उस व्यापारी के बेटे से जिस कन्या का विवाह संपन्न हुआ वह कन्या सदैव मंगला गौरी का व्रत करती और मां पार्वती का पूजन करती थीं। मंगला गौरी व्रत के प्रभाव से कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था। मंगला गौरी व्रत के प्रभाव से उस व्यापारी के बेटे की मृत्यु टल गई और उसे दीर्घायु की प्राप्ति हुई।
21 जुलाई को सावन का तीसरा मंगला गौरी व्रत है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन महीने के मंगलवार के दिन यह व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव संग माता पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है और अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व होता है। जिस प्रकार से भगवान शिव को सावन महीने का सोमवार अतिप्रिय होता है उसी प्रकार माता पार्वती को सावन मंगलवार का दिन बहुत ही प्रिय होता है। सावन मंगलवार के दिन माता मार्वती की पूजा करने से शुभफलदायी और सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए इसे मंगला गौरी व्रत कहा जाता है।
मंगला गौरी व्रत पूजा विधि
मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही शुभ और सौभाग्यशाली व्रत माना गया है। ऐसे में जो महिलाएं माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को रखना चाहती हैं वे सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि क्रिया करके स्वच्छ वस्त्र पहने। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या तस्वीर को लाल रंग के कपड़े के ऊपर रखकर पूजा का संकल्प लें और उसके बाद पूजा आरंभ करें।
पूजा में माता को सुहाग की सारी पूजा सामग्रियों को चढ़ाएं और विधिवत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें। पूजा करने के बाद माता पार्वती की आरती करें। व्रत रखने के दौरान पूरे दिन में सिर्फ एक बाद सात्विक भोजन ग्रहण करें।
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मंगला गौरी व्रत के लाभ
सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा सावन में मंगला गौरी व्रत रखने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य, दांपत्य सुखी जीवन और संतान सुख का फल प्राप्त होता है। वहीं जिन कन्याओं के विवाह में कोई अड़चन आती है वह इस व्रत को रख सकती हैं।
मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक व्यापारी और उसकी पत्नी सुखी जीवनयापन कर रहे थे। व्यापारी के पास ढ़ेर सारी धन-संपदा थी। लेकिन पति- पत्नी संतान सुख से वंचित थे। लगातार कई वर्षों तक कठोर व्रत और पूजा करने के बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। लेकिन किसी ज्योतिषाचार्य ने उन्हें बताया कि यह बालक की कम आयु में ही मृत्यु हो जाएगी। इस बात को जानकार दोनों बेहद परेशान होने लगे।
कुछ वर्षों के बाद बेटे की आयु विवाह योग्य हुई तो उसके माता-पिता ने एक सुयोग्य कन्या संग उसका विवाह कर दिया। उस व्यापारी के बेटे से जिस कन्या का विवाह संपन्न हुआ वह कन्या सदैव मंगला गौरी का व्रत करती और मां पार्वती का पूजन करती थीं। मंगला गौरी व्रत के प्रभाव से कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था। मंगला गौरी व्रत के प्रभाव से उस व्यापारी के बेटे की मृत्यु टल गई और उसे दीर्घायु की प्राप्ति हुई।