पूरी दुनिया एक साथ पिछले कुछ महीनों से कोरोना वायरस से लगातार जूझ रही है। रोजाना कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है। कोरोना महामारी से दुनिया का आर्थिक ढांचा हिल सा गया है। कई देश इस समय कोराना वायरस का इलाज खोजने में लगे हुए लेकिन किसी को भी अब तक सफलता नहीं मिल रही है। इस बीच कोरोना के संक्रमण की रोकथाम के लिए कई तरह के नियम कायदे बनाए और उनका पालन किया जा रहा है जिसमें लोगों को एक दूसरे से सामजिक दूरी बनाकर, बार-बार हाथ धोने और मुंह में मास्क पहनने के लिए प्रेरित और जागरूक किया जा रहा है।
हिंदू धर्म शास्त्रों और वैदिक परंपरा में आज से हजारों वर्षों पहले ही इस तरह के संक्रमण और बीमारियों से बचने के लिए ऋषि- मुनियों ने कुछ सूत्र और नियम बनाए थे जिसका पालन आज अब समूची आधुनिक दुनिया अपना रही है। आइए जानते हैं वैदिक परंपरा में संक्रमण से बचने के कौन-कौन से उपाय बताए गए हैं।
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:। (वाधूलस्मृति 9) *नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:। (मनुस्मृति 4/49)
अर्थात
किसी भी व्यक्ति को हमेशा नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर और मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए।
तथा न अन्यधृतं धार्यम्। (महाभारत अनु.104/86)
अर्थात
कभी भी किसी भी स्थिति में दूसरों के पहने हुए कपड़े नहीं पहनना चाहिए।
स्नानाचारविहीनस्य सर्वा:स्यु: निष्फला: क्रिया:! (वाधूलस्मृति 69)
अर्थात
स्नान और शुद्ध विचार के बिना सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं, इसलिए सभी कार्य स्नान करके शुद्ध होकर करने चाहिए।
अन्यदेव भवेद् वास: शयनीये नरोत्तम।
अन्यद् रथ्यासु देवनानाम् अर्चायाम् अन्यदेव हि।। (महाभारत104/ 86)
अर्थात
सोते, घूमने जाने और पूजन के समय अलग-अलग कपड़े पहनने चाहिए।
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च। लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्। (धर्मसिंधु 3 पू.आह्निक)
अर्थात
नमक, घी, तैल, कोई भी व्यंजन, चाटने योग्य एवं पेय पदार्थ यदि हाथ से परोसे गए हों तो न खायें, चम्मच आदि से परोसने पर ही ग्राह्य हैं।
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्। (विष्णुस्मृति 64)
अर्थात
पहने हुए वस्त्र को बिना धोए दोबार न पहनें।
न चैव आर्द्राणि वासांसि नित्यं सेवेत मानव:। (महाभारत अनु.104/52)
अर्थात
गीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:। वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च। (विष्णुस्मृति 22)
अर्थात
श्मशान में जाने पर और हजामत बनवाने के बाद स्नान करके शुद्ध होना चाहिए।
हस्तपादे मुखे चैव पञ्चार्द्रो भोजनं चरेत्। (पद्मपुराण सृष्टि 51/88)
अर्थात
हमेशा हाथ, पैर और मुंह धोकर ही भोजन करना चाहिए।
अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:। (मार्कण्डेय पुराण 34/52)
अर्थात
स्नान करने के बाद अपने हाथों से या स्नान के समय पहने भीगे कपड़ों से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए।
अनातुर: स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्तत:। ( मनुस्मृति 4/ 144)
अर्थात
बिना वजह के अपने नाक, कान, आंख को न छुएं।
पूरी दुनिया एक साथ पिछले कुछ महीनों से कोरोना वायरस से लगातार जूझ रही है। रोजाना कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है। कोरोना महामारी से दुनिया का आर्थिक ढांचा हिल सा गया है। कई देश इस समय कोराना वायरस का इलाज खोजने में लगे हुए लेकिन किसी को भी अब तक सफलता नहीं मिल रही है। इस बीच कोरोना के संक्रमण की रोकथाम के लिए कई तरह के नियम कायदे बनाए और उनका पालन किया जा रहा है जिसमें लोगों को एक दूसरे से सामजिक दूरी बनाकर, बार-बार हाथ धोने और मुंह में मास्क पहनने के लिए प्रेरित और जागरूक किया जा रहा है।
हिंदू धर्म शास्त्रों और वैदिक परंपरा में आज से हजारों वर्षों पहले ही इस तरह के संक्रमण और बीमारियों से बचने के लिए ऋषि- मुनियों ने कुछ सूत्र और नियम बनाए थे जिसका पालन आज अब समूची आधुनिक दुनिया अपना रही है। आइए जानते हैं वैदिक परंपरा में संक्रमण से बचने के कौन-कौन से उपाय बताए गए हैं।
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:। (वाधूलस्मृति 9) *नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:। (मनुस्मृति 4/49)
अर्थात
किसी भी व्यक्ति को हमेशा नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर और मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए।
तथा न अन्यधृतं धार्यम्। (महाभारत अनु.104/86)
अर्थात
कभी भी किसी भी स्थिति में दूसरों के पहने हुए कपड़े नहीं पहनना चाहिए।
स्नानाचारविहीनस्य सर्वा:स्यु: निष्फला: क्रिया:! (वाधूलस्मृति 69)
अर्थात
स्नान और शुद्ध विचार के बिना सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं, इसलिए सभी कार्य स्नान करके शुद्ध होकर करने चाहिए।
अन्यदेव भवेद् वास: शयनीये नरोत्तम।
अन्यद् रथ्यासु देवनानाम् अर्चायाम् अन्यदेव हि।। (महाभारत104/ 86)
अर्थात
सोते, घूमने जाने और पूजन के समय अलग-अलग कपड़े पहनने चाहिए।
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च। लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्। (धर्मसिंधु 3 पू.आह्निक)
अर्थात
नमक, घी, तैल, कोई भी व्यंजन, चाटने योग्य एवं पेय पदार्थ यदि हाथ से परोसे गए हों तो न खायें, चम्मच आदि से परोसने पर ही ग्राह्य हैं।
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्। (विष्णुस्मृति 64)
अर्थात
पहने हुए वस्त्र को बिना धोए दोबार न पहनें।
न चैव आर्द्राणि वासांसि नित्यं सेवेत मानव:। (महाभारत अनु.104/52)
अर्थात
गीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:। वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च। (विष्णुस्मृति 22)
अर्थात
श्मशान में जाने पर और हजामत बनवाने के बाद स्नान करके शुद्ध होना चाहिए।
हस्तपादे मुखे चैव पञ्चार्द्रो भोजनं चरेत्। (पद्मपुराण सृष्टि 51/88)
अर्थात
हमेशा हाथ, पैर और मुंह धोकर ही भोजन करना चाहिए।
अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:। (मार्कण्डेय पुराण 34/52)
अर्थात
स्नान करने के बाद अपने हाथों से या स्नान के समय पहने भीगे कपड़ों से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए।
अनातुर: स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्तत:। ( मनुस्मृति 4/ 144)
अर्थात
बिना वजह के अपने नाक, कान, आंख को न छुएं।